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एक दिन ऐसे ही गिरूँगा टूटकर
महावृक्ष के पत्ते-सा
कुछ पता नहीं चलेगा
निचाट सुनसान में
चीख फट पड़ेगी बाहर
झूल जाऊँगा रिक्शे से
लिटा दिया जाएगा खुरदुरी जमीन पर
क्या यह अंत से पहले का हादसा है
गनीमत कि बेटी साथ थी
उसके जानने वाले थे
बिसलरी का पानी था देर से सही
समय बताता नहीं कि दिन पूरे हो रहे हैं
चींटी तो जानती है अपना गंतव्य
न हम चुप रह पाते हैं
न बोल पाते हैं
आज ही भारत बंद होना था
सिटी मॉल बंद
बुक कार्नर बंद
चिकित्सक का क्लिनिक बंद
कभी ऐसा ही हुआ था
निजामुद्दीन-गोवा एक्सप्रेस में
बारिश है कि रुकने का नाम नहीं ले रही
खबर है कि मुंबई में नावें चल रही हैं
अनहोनी अब एक फिल्म का नाम है
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